चालीस हजार की आबादी वाले असारा गाँव में नहीं है किसी भी बैंक की शाखा

Date: 2024-02-29
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बागपत
आजादी के बाद से एक अदद बैंक के लिए तरस रहे असारा गाँव को भाजपा के दस वर्षों के शासन में भी शायद हाथ मलते ही रहना पडेगा।वृद्धावस्था पैंशन, किसानों को सम्मान निधि, सरकारी अनुदान, छात्र छात्राओं के वजीफे से लेकर किसी भी इमरजेंसी में असारा के ग्रामीणों को गांव से दो - चार किमी दूर दूसरे गाँवों में खुले बैंकों में जाने को विवश होना पडता है। 

करीब चालीस हजार की आबादी वाले गाँव असारा में एक भी बैंक न होने की समस्या से ग्रस्त लोगों को सुविधा देने के लिए न तो सरकार का ध्यान गया, न जनप्रतिनिधियों ने पहल की और न ही किसी राजनीतिक दल ने, जिसका नतीजा है कि, लोगों की जरूरत का फायदा सूदखोर उठा रहे हैं। 

ग्रामीणों का कहना है कि, यूं तो आवागमन की कोई सरकारी सुविधा भी इस क्षेत्र या गांव के लिए नहींं है किंतु सरकारी अस्पताल और बैंक तो जरूर ही होने चाहिएं। बीमारी के इलाज के लिए डाक्टर के पास जाने से पहले रुपये व आवागमन की सुविधा बेहद जरुरी है, लेकिन गांव का यह दुर्भाग्य है कि, बैंक व सरकारी बसों के अभाव में समस्याओं का सामना करने को लंबे समय से मजबूर हैं। 

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महामंत्री मुशर्रफ शाह ने अपने गांव की इन्हीं समस्याओं की ओर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, राज्यमंत्री केपी मलिक सहित दानिश आजाद अंसारी के सम्मुख रखी तथा उनके कहने पर ज्ञापन भी दिया तथा आश्वासन भी मिला, लेकिन यह तय है कि, नरेंद्र मोदी सरकार के इन दस वर्षों के कार्यकाल में बैंक का खुलना तो क्या स्वीकृति होना भी मुश्किल है। हाँ, इस समस्या को उठाने की पहल भाजपा नेता मुशर्रफ शाह ने शुरू जरूर की है, देर सबेर इसपर अमल संभव है, तब तक ग्रामीणों को इमरजेन्सी में सूदखोरों से बचने का कोई रास्ता नहीं है।

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