मुकीम खान नाम के एक आदमी ने एक वाद दायर कर दिया कि महाभारत कालीन लाक्षागृह और उससे जुड़े अवशेष वक्फ बोर्ड की संपत्ति है।
Date: 2024-02-14
साल 1970 की एक सुबह बरनावा में मुकीम खान नाम का एक आदमी सोकर उठा और मेरठ की सरधना कोर्ट की ओर चल पड़ा। कोर्ट में उसने लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाते हुए एक वाद दायर कर दिया कि महाभारत कालीन लाक्षागृह और उससे जुड़े अवशेष वक्फ बोर्ड की संपत्ति है।
लाक्षागृह और उसके आसपास की 100 एकड़ से भी ज्यादा की जमीन को शेख बदरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान बता कर उस पर पूर्ण अधिकार मांगा गया। हिन्दू पक्ष को 53 साल तक कोर्ट में केस लड़ना पड़ा और अब जाकर कोर्ट ने हज़ारो साल पुराने अवशेषों और प्रमाणों के आधार पर फैसला सुनाया है कि ये कोई मजार या कब्रिस्तान नहीं है बल्कि महाभारत कालीन लाक्षागृह ही है।
नीचता देखिये कि लाक्षागृह साबित होने के बाद अब मजार पक्ष इस फैसले को अब हाईकोर्ट में चुनौती देगा, वहां भी हारेगा। फिर सुप्रीम कोर्ट जाएगा और वहाँ भी हारेगा। सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में पांच पांच दस दस हज़ार साल पुराने स्ट्रक्चर को साढ़े चौदह साल पहले टपके लोग पूरी बेशर्मी से अपना बता रहे हैं और कब्जे करने में सफल भी हो रहे है।
अपने जन्म के साथ ही अरब कुरैशों का पूजा स्थल कब्जा कर उसे अपनी सबसे पवित्र जगह बना ली। यहूदियों के सबसे पवित्र स्थान माउंट टेम्पल पर जबरन अतिक्रमण कर उसे अपनी तीसरी सबसे पवित्र जगह बना दी। श्रीलंका में एडम्स पीक पर बुद्ध पदचिन्ह को आदम का पदचिह्न बता कर वहां भी कब्जा कर रखा है। तुर्की में ईसाइयों की हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद में बदल कर कब्जा कर लिया।
संसार की कोई भी सभ्यता इनसे कब्जे वाला अपना धार्मिक स्थल वापस नहीं ले पा रही है। लेकिन इनका दुर्भाग्य है कि भारत में इनका मुकाबला संसार की उस इकलौती और जीवट सभ्यता से है जिसे जो इनकी छाती पर पैर रखकर अपने धार्मिक स्थलों को वापस लेने की क्षमता रखती है। हां, आप इनके हलक में हाथ डाल कर अपनी धरोहरें वापस खींच वाली दुनिया की इकलौती सभ्यता है।