इंटेलेक्चुअल या बुद्धिजीवी भारत में और पूरे विश्व में "आक्रामक धर्मों" से नहीं निपट सके।
Date: 2024-02-14
इंटेलेक्चुअल या बुद्धिजीवी भारत में और पूरे विश्व में "आक्रामक धर्मों" से नहीं निपट सके।ये समूचे विश्व में हुआ और अभी तक होता आया है ये फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन समेत तमाम देशों ने दशकों से सद्भावना और धर्मनिरपेक्षता पर चलने का चलन बनाया। मगर उसका नतीजा ये हुआ कि उनके ही देश में बाहर से आए शरणार्थियों ने वहां के धर्मनिरपेक्ष कानूनों का जम कर फ़ायदा उठाया और आज इन देशों की अपनी निजी संस्कृति और विचार दांव पर लगे हैं।
विकसित देशों के साथ दिक्कत ये हुई कि उनकी अपनी जनता, तो अत्यंत समझदार, भावुक और सभ्य थी, वो तो धर्मनिरपेक्षता, भाईचारे और सहस्तित्व का पालन करती रही और उसे जीती रही मगर "बर्बर कबीलों" की संस्कृति जो दूसरे देशों से आई, वो इन जनता और उसके भावनाओं के "मध्य सेंध" लगाती रही।पहले तो लोगों को ये लगा कि ये सब उसी तरह को धार्मिक क्रियाएं हैं जैसी उनकी हैं, यानि संडे को चर्च जाना और फिर आराम से रहना। मगर दशकों बाद इन्हें समझ आया कि सबका धार्मिक कार्यकलाप एक जैसा नहीं है। आक्रामक मानसिकता वालों को हर देश की संस्कृति, सभ्यता और धर्म को मिटाना और हथियाना है।और यही उनका ध्येय है।
भारत में भी गांधी जी सबको बिठा कर "ईश्वर अल्लाह तेरो नाम" गाते थे मगर हिंदुओं के सिवा इसका असर और किसी पर न हुआ।बाकी लोगों ने ईश्वर से अल्लाह को अलग करके पाकिस्तान बना लिया।और इस सब के बावजूद गांधी जी का भजन यथावत जारी रहा क्योंकि वो उनके मूल में था, उनकी वही शिक्षा थी।जैसे फ्रांस और अन्य देशों के लिए धर्मनिरपेक्षता उनका मूल था और उनकी शिक्षा थी।
कांग्रेस पार्टी भी गांधी जी के उसी मूल पर चलती रही।और सद्भाव और सहस्तित्व पर दृढ़ता पूर्वक जमी रही। मगर उसका नतीजा खतरनाक होता जा रहा था।हर दूसरे दिन कहीं न कहीं बम धमाका और बेगुनाह लोगों की जान जाती रही। कांग्रेस समेत तमाम बुद्धिजीवी वर्ग इसे समझ ही न पाए कि इस से निपटा कैसे जाय। पाकिस्तान लेने के बाद भी कुछ लोगों का एक दूसरा लक्ष्य सेट था और वो था तमाम भारत को इस्लामिक बनाना। यही फ्रांस से लेकर हर जगह भी चला और चल रहा है।
इसलिए प्रकृति ने करवट ली और जिस विचारधारा को हम और आप और तमाम बुद्धिजीवी जाहिल, बेवकूफ और नफ़रत वाली विचारधारा समझते और मानते थे, उसके लोगों का बोलबाला हुआ। प्रकृति ने उन्हें हर जगह ऊपर किया।और अब ये सबको समझ आने लगा कि बम फोड़ने वाली विचारधारा से आप बुद्धिजीवी बन कर नहीं निपट सकते हैं।
भाजपा के आते ही सारे भारत में बम धमाके बंद गए हो गए।वहीं कांग्रेस जो सबको समान अधिकार देकर सबके सम्मान और धार्मिक आज़ादी की रक्षा में जुटी थी, उसकी इस विचारधारा और नीति को "कमज़ोरी" की तरह लिया जाता था और कुछ लोग इसी कमज़ोरी की आड़ ले कर "अपने लक्ष्य" की ओर सतत अग्रसर थे.. जैसे फ्रांस और अन्य जगह अभी हैं.. इसलिए उनमें से ज्यादातर अब परेशान हैं और उन्हें कांग्रेस वापस चाहिए।जब कांग्रेस जैसी विचारधारा वाली पार्टियां सत्ता में होती हैं तब उनकी विचारधारा का नाजायज फ़ायदा उठाया जाता है।और ये समूचे विश्व में हो रहा था।
बीते दस सालों के वैश्विक घटनाक्रम, सत्ता के बदलाव और उनके प्रभाव को देखते हुवे मौजूदा समय में ये बात तो तय नज़र आती है कि आप आक्रामक विचारधारा से सौम्यता, सभ्यता, और सहस्तित्व की भावना के साथ कभी नहीं निपट पाएंगे।उसके लिए आप को, जिन्हें अभी तक आप बेवकूफ, नफरती और जाहिल समझते थे, उन्हें आगे लाना होगा।
क्योंकि कोई भी बुद्धिजीवी, कलाकार और रचनात्मक व्यक्ति कभी युद्ध नहीं लड़ता है।चाहे वो सुकरात हों, गांधी हों, शशि थरूर हों, सोनू निगम हों या अमिताभ बच्चन। इन सब बुद्धिजीवियों के परिवार और नस्लों की बर्बर विचारधारा के लोगों से रक्षा हमेशा उन्हीं लोगों ने की है जो जाहिल, गंवार और बेवकूफ थे, कम पढ़े लिखे थे और युद्ध में बढ़ चढ़ कर लड़े थे।
प्रकृति में हर किसी का अपना काम है।ज्यादातर जगहों पर बुद्धिजीवी किसी काम के नहीं होते हैं।अभी बुद्धिजीवियों का दौर नहीं है।।