भारतीय जनता पार्टी भाजपा के संसद सदस्य मोहन मंडावी और भागीरथ चौधरी ने मिसाल कायम की है। दोनों सांसदों ने 17वीं लोकसभा के दौरान अपनी सौ फीसदी उपस्थिति दर्ज कराई। संयोग से दोनों पहली सांसद बने और उन्हें एक-दूसरे के अगल-बगल सीट मिलीं थीं।
मंडावी ने कहा, "मुझे जो काम सौंपा गया है, मैं उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ पूरा कर रहा हूं। मैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र कांकेर का प्रतिनिधित्व करता हूं। कोरोना महामारी के दौरान भी सदन में उपस्थित हुआ था।" पीआरएस विधायिका की ओर से आंकड़े साझा किए गए हैं। जिसके मुताबिक, राजस्थान के अजमेर से सांसद भागीरथ चौधरी और मंडावी ने सत्रहवीं लोकसभा के दौरान सौ फीसदी उपस्थिति दर्ज की। जिसमें उनके कार्यकाल के दौरान औसतन 79 फीसदी उपस्थिति देखी गई। मंडावी ने कहा कि लोकसभा में उनकी और चौधरी की सीट अगल-बगल में थीं।
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से भाजपा सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल सबसे सक्रिय संसद सदस्य थे। जिन्होंने सत्रहवीं लोकसभा में 1,194 बहसों में भाग लिया। इसके बाद अंडमान औ निकोबार द्वीप समूह से कुलदीप राय शर्मा सबसे सक्रिय सांसद रहे। जिन्होंने 833 बहसों में भाग लिया। पीआरएस विधायिका किसी सदस्य द्वारा विधेयकों में चर्चा में भाग लेने, शून्यकाल में मुद्दे उठाने, विशेष उल्लेख और अन्य सदस्यों की ओर से उठाए गए मुद्दों से जुड़ने को 'बहस की भागीदारी' की श्रेणी में मानती है। इसके मुताबिक, बसपा सांसद मलूक नागर ने 582 बहसों में भाग लिया। जबकि, धर्मपुरी से द्रमुक सांसद डीएनवी सेंथिल कुमार ने 307, कोल्लम से आरएसपी के सांसद एनके प्रेमचंद्र ने 265, बारामती से राकांपा (शरद पवार गुट) सांसद सुप्रिया सुले ने 248 बहसों में भाग लिया।
जबकि, फिल्म अभिनेता से नेता बने सनी देओल (भाजपा) और शत्रुघ्न सिन्हा (तृणमूल कांग्रेस) उन नौ लोकसभा सदस्यों में शामिल रहे, जिन्होंने किसी विधेयक पर चर्चा में हिस्सा नहीं लिया। इसके अलावा, सत्रहवीं लोकसभा में भाजपा सांसद रमेश जिगजिनागी, बीएन बाचेगौड़ा, प्रधान बरुआ, अनंत कुमार हेगड़े और वी. श्रीनिवास प्रसाद, तृणमूल कांग्रेस के दिव्येंदु अधिकारी व बसपा सांसद अतुल कुमार ने किसी बहस में हिस्सा नहीं लिया।