फिरोजाबाद
संयुक्त प्रयास में, वाइल्डलाइफ एसओएस और उत्तर प्रदेश वन विभाग ने फिरोजाबाद के जसराना रेंज स्थित पलिया दोयम गांव से छह फुट लंबे मगरमच्छ को सुरक्षित रूप से पकड़ कर स्थानांतरित किया। वन विभाग के साथ निर्बाध रूप से कार्यरत, एनजीओ की रैपिड रिस्पांस यूनिट ने मगरमच्छ के सुरक्षित बचाव और पुनर्वास को सुनिश्चित किया।
बचाव अभियान तब शुरू हुआ जब ग्रामीणों ने सड़क के किनारे एक मगरमच्छ को देखा और तुरंत निकट के वन विभाग को सतर्क कर दिया। मगरमच्छ गांव के तालाब से भटक कर सड़क पर आ गया था. तात्कालिकता को समझते हुए, वन विभाग ने वाइल्डलाइफ एसओएस को इसकी सूचना दी। एनजीओ की बचाव टीम तुरंत तैयार हुई और स्थान पर पहुची।
घटनास्थल पर पहुंचने पर रैपिड रिस्पांस यूनिट को भारी भीड़ का सामना करना पड़ा। वन विभाग की टीम भीड़ को नियंत्रित करने में लग गई जिसके बाद पिंजरे का उपयोग करके मगरमच्छ को सुरक्षित रूप से बाहर निकाला। मगरमच्छ का स्वास्थ्य आंकलन करने के लिए साइट पर चिकित्सा परीक्षण किया गया और स्वस्थ पाए जाने पर, उसे उसके प्राकृतिक आवास में वापस छोड़ दिया गया।
*आशीष कुमार, वन्छेत्राधिकारी, जसराना ने कहा*, “यह बचाव अभियान दर्शाता है कि वन्यजीवों के आपात स्थिति में फसने पर तुरंत प्रतिक्रिया देना कितना महत्वपूर्ण है। संकटग्रस्त मगरमच्छ को सहायता प्रदान करने में टीम की सफलता वाइल्डलाइफ एसओएस और वन विभाग के समन्वित संचालन को दर्शाता है।
*वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ, कार्तिक सत्यनारायण ने बताया,* “वाइल्डलाइफ एसओएस नियमित रूप से विभिन्न जागरूकता अभियानों में शामिल होता है, जो स्थानीय समुदाय को वन्यजीवों के साथ सद्भाव रूप से रहने को प्रेरित करते हैं। ऐसे सफल मगरमच्छ रेस्क्यू ऑपरेशन स्थानीय लोगों और निवासी ग्रामीणों की इस तरह के कार्यों के महत्व के बारे में बढ़ती जागरूकता को दर्शाता है।
*वाइल्डलाइफ एसओएस के डायरेक्टर कंज़रवेशन प्रोजेक्ट्स, बैजूराज एम.वी ने कहा,* “बचाव प्रयास की सफलता मनुष्यों और मगरमच्छों के बीच संघर्ष को कम करने में त्वरित भागीदारी के महत्व पर प्रकाश डालती है। हमारा लक्ष्य ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए तेजी से कार्रवाई करके इन अविश्वसनीय सरीसृपों के प्राकृतिक आवासों के साथ-साथ आस-पास के समुदायों की सुरक्षा करना है।
मगर क्रोकोडाइल जिसे मार्श क्रोकोडाइल के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप, श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। यह आमतौर पर मीठे पानी जैसे नदी, झील, पहाड़ी झरने, तालाब और मानव निर्मित जलाशयों में पाया जाता है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित है।